चीन के राजदूत सींग हाई-मिंग के बयान के बाद चीन और दक्षिण कोरिया के बीच का तनाव एक बार फिर से सुर्ख़ियों में है।
तस्वीर मेरे द्वारा खींची गई चीन -कोरिया की 30वी वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्य्रकम की है।
डॉ संजय कुमार (दक्षिण कोरिया से)
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह दक्षिण कोरिया में चीन के राजदूत सींग हाई मिंग ने दक्षिण कोरिया के सत्ताधारी दल की ओर इशारा करते हुए कहा था --
"कुछ लोग (सत्ताधरी दल के) शर्त लगा रहे हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन की प्रतिद्वन्दता में अमेरिका ही जीत जाएगा और चीन की हार होगी । जो लोग चीन की हार पर दांव लगा रहे हैं, वह निश्चित रूप से बाद में पछताएंगे।"
यह बयान राष्ट्रपति ऑफिस, विदेश मंत्रालय , मीडिया और कोरिया के जनमानस में आग की तरह फैल सी गई । आग को बुझाने की बजाय घी डालने वाले लोगों की तादाद बढ़ने लगी । चीनी राजदूत को कोरिया के उप विदेश मंत्री ने तलब कर दिया, चीन का विदेश मंत्रालय भी त्वरित और पारस्परिक कदम उठाकर चीन में कार्यरत दक्षिण कोरिया के राजदूत को भी तलब कर दिया। दोनों देशों के कूटनीतिक गलियारों में चर्चाओं का माहौल और राजनयिक विवाद जैसे को तैसा में तब्दील हो गया ।
संबंधों की खटास हाल के वर्षों में नया नहीं लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग की नई भूराजनीतिक जमीन तैयार कर सकती है इससे इंकार नहीं किया जा सकता । अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन जो अभी चीन के दौरे पर हैं उन्होंने चीन के साथ "स्वस्थ और परिपक्व" सहकारी संबंध विकसित करने के दक्षिण कोरिया के प्रयासों का समर्थन किया है। यह सलाह द्विपक्षीय तनाव को कम करने में मदद करेगा ऐसे आसार हैं ।
चीन और कोरिया की ऐतिहासिक विरासत और आधुनिक प्रतिद्वंद्वितासदियों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान और साझा मूल्यों से बंधी रही हैं। कोरियाई युद्ध और चीन-सोवियत विभाजन जैसे घटनाक्रमों ने संबंधों को पहले भी तनावपूर्ण बनाया था । लेकिन पूर्व एशिया में विकास की पटरी लगभग 3 दशकों में साथ चलने के बाद आर्थिक अन्योन्याश्रय: में चीन और कोरिया की आर्थिक साझेदारी और उनके संबंधों की आधारशिला रही है । द्विपक्षीय व्यापार और निवेश लगातार बेहतर होते चले गए ।
लेकिन वर्तमान में दक्षिण कोरिया के परस्पर आर्थिक निर्भरता दोधारी तलवार सी हो चुकी है जिससे दक्षिण कोरिया चीन की आर्थिक नीतियों के संभावित नतीजों को लेकर संवेदनशील हो गया है। चीन में सक्रिय कोरियाई कंपनियों पर हाल के व्यापार विवाद और प्रतिबंध उनके आर्थिक संबंधों की नाजुकता को उजागर करते हैं। दोनों देशों को अपने हितों की रक्षा , दक्षिण चीन सागर में चीन की मुखरता और दक्षिण कोरिया में थाड(THAAD ) मिसाइल रक्षा प्रणाली की तैनाती जैसे मुद्दों से प्रभित रही और पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा गहरी होती जा रही ।अमेरिकी-चीनी प्रतिद्वन्दता के बीच आपसी आर्थिक विकास को बढ़ावा देना दक्षिण कोरिया के लिए बड़ी चुनौती है।
कोरिया के युवा वर्गों में चीन के प्रति नकारात्मक धारणाएं खासकर मास मीडिया के माध्यम से प्रचारित माध्यमिक स्रोत की जानकारी, मौजूदा सांस्कृतिक आधारित रुझान का टकराव जैसे कि हाल में चीन में किमची की उत्पत्ति इत्यादि, और दक्षिण कोरिया में रह रहे चीनी नागरिकों का कोरियाई रियल एस्टेट निवेश में बढ़ रही भागीदारी को लेकर पनप रही चीन के प्रति अनिच्छा इत्यादि प्रबल हैं और दोनों देशों के संबंधों की नकारात्मकता में योगदान दे रहा है। राजनयिक स्तर पर इसे कम करने की कोशिश की जानी चाहिए ।
पूर्वी एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य चीन का वैश्विक शक्ति के रूप में उदय और रूस - उत्तर कोरिया जैसे देशों के साथ चीन की बढ़ती मुखरता-निकटता और साझा रणनीतिक हितों को देखते हुए दक्षिण कोरिया में चिंता ज्यादा हो रही है। लेकिन यह कितनी उचित चिंता है --आने वाले वर्षों में ही सामने आ पायेगा ।
तस्वीर मेरे द्वारा खींची गई चीन -कोरिया की 30वी वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्य्रकम की है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सियोल के गठबंधन और उत्तर कोरिया में चीन और रूस का प्रभाव क्षेत्रीय स्थिरता को बाधित करेने और कोरियाई प्रायद्वीप पर परमाणुकरण पर रोक जैसे मुद्दों को बाधित करने की क्षमता रखता है। ऐसी परिस्थति में बिगड़ते चीन-कोरिया संबंधों को हल करने के लिए एक आपसी समझ पर आधारित व्यावहारिक कूटनीति का दृष्टिकोण और दोनों देशों खुले चैनल को सक्रिय बना रचनात्मक संवाद करना समय की जबरदस्त मांग हैं ।
आक्रामक बयानबाजी और दंडात्मक रुख के बजाय आम जमीन की तलाश कर सहयोग के रास्ते ढूंढे जाने चाहिए अन्यथा मुद्रास्फीति और कमोडिटी की कीमतें और बढ़ेंगी।
सॉफ्ट पावर की पहल, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, और लोगों से लोगों की बातचीत दोनों देशों के बीच समझ और विश्वास को बढ़ावा देगा। तनाव बढ़ने से दोनों देशों को नुकसान होगा इसलिए आर्थिक सहयोग को निष्पक्ष और पारदर्शी प्रथाओं द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए, जिससे दोनों पक्षों के व्यवसायों के लिए एक समान अवसर सुनिश्चित हो सके। व्यापार बाधाओं को कम करने, बाजार पहुंच बढ़ाने और विवाद समाधान के लिए तंत्र बनाने से अधिक लचीला आर्थिक संबंध बनेगा ।
चीन और कोरिया को जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और क्षेत्रीय सुरक्षा जैसी साझा चुनौतियों से निपटने के अवसर का लाभ उठाना चाहिए जिससे सहयोगात्मक प्रयास का विश्वास पैदा हो सके । एक स्थिर और सहयोगी चीन-कोरिया संबंध न केवल दोनों देशों के लिए फायदेमंद है बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और पूर्वी एशिया में साझा लक्ष्यों की सामूहिक खोज के लिए भी महत्वपूर्ण है।
चीन को चाहिए कि 1980 के दशक में देंग जिआओ पिंग द्वारा इस्तेमाल की गई वाक्यांश -- ताओ गुआंग यांग हुई (韬光养晦) जो चीन के कूटनीति का हिस्सा भी रहा है उसे अमल में लाकर वर्तमान तनाव को कम करें ।
कोरिया को भी संभलकर कूटनीतिक कदम उठाने होंगे । दोनों देशों के लिए चुनौतीपूर्ण समय है।
डॉ संजय कुमार (कोरिया से )