Saturday, 2 November 2024

कोरियाई प्रायद्वीप का बदलता भू-राजनीतिक परिदृश्य


 कोरियाई प्रायद्वीप पर उत्तर और दक्षिण कोरिया के संबंधों की वर्तमान स्थिति एक नए युग की भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्रतीक है। यह बदलाव वैश्विक स्तर पर अमेरिका-चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता का नतीजा है। कूटनीति के कई असफल प्रयासों, खासकर 2019 के हनोई शिखर सम्मेलन के बाद, उत्तर कोरिया ने यह निष्कर्ष निकाला है कि अमेरिका के साथ संबंध सुधार उसकी सुरक्षा चिंताओं का हल नहीं है। इसके फलस्वरूप, प्योंगयांग ने अपनी संप्रभुता की रक्षा और बाहरी खतरों को रोकने के लिए अपनी परमाणु शक्ति को मजबूत किया है, जिससे उसकी स्थिति और प्रभाव कोरियाई प्रायद्वीप पर सुदृढ़ हो गया है।

इस बदलते भू-राजनीतिक माहौल में, उत्तर कोरिया का नजरिया "नई शीत युद्ध" की व्यवस्था के अंतर्गत और भी सशक्त हुआ है, जहाँ अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान एक ओर और रूस, चीन तथा उत्तर कोरिया दूसरी ओर गठबंधन के रूप में उभर रहे हैं। रूस और चीन जैसे प्रभावशाली राष्ट्र उत्तर कोरिया को प्रतिबंधों के आर्थिक दबाव से कुछ हद तक बचाने में सहायक हैं, लेकिन चीन के साथ इसके आंतरिक तनाव बने हुए हैं। चीन का पूर्वी एशिया में संतुलन की नीति को बढ़ावा देने का अपना दृष्टिकोण है, जो केवल सैन्य सुरक्षा पर नहीं टिका है।

दक्षिण कोरिया की स्थिति भी बदल रही है। राष्ट्रपति यून सुक-योएल के नेतृत्व में, दक्षिण कोरिया की सरकार ने सुरक्षा और रक्षा पर ध्यान देना शुरू किया है ताकि घटते जनसमर्थन को संतुलित किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप, दक्षिण कोरिया में परमाणु शस्त्रीकरण के लिए समर्थन बढ़ा है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर निर्भरता और प्रतिबंधों के संभावित परिणाम इसे परमाणु हथियारों की दिशा में बढ़ने से रोकते हैं। अमेरिका के समर्थन पर इसकी निर्भरता भी इसे ऐसे कदम उठाने से रोकती है जो इसके आर्थिक हितों को खतरे में डाल सकते हैं।

चीन की नीति, जो कुछ हद तक उत्तर कोरिया का समर्थन करती है, स्थिरता के साथ अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों को बनाए रखने पर केंद्रित है। वहीं, अमेरिका ने अपनी चीन-केंद्रित रणनीति में उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण को अब कम प्राथमिकता दी है। यह बदलाव कोरियाई प्रायद्वीप पर अमेरिका की प्रत्यक्ष संलिप्तता को कम करता है, जिससे उत्तर कोरिया का मुद्दा वॉशिंगटन की प्राथमिकताओं में गौण होता जा रहा है।

दक्षिण कोरिया के भीतर राष्ट्रपति यून के प्रशासन के प्रति असंतोष बढ़ रहा है, और जापान-अमेरिका के साथ बढ़ते सहयोग पर आंतरिक विरोध भी देखने को मिल रहा है। जापान के साथ ऐतिहासिक विवादों से भी क्षेत्रीय साझेदारी प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त, दक्षिण कोरिया के चीन के साथ व्यापारिक संबंध, खासकर अर्धचालक जैसे महत्वपूर्ण उद्योगों में, उसे अमेरिकी रणनीतिक हितों के साथ पूर्ण रूप से संरेखित करने में कठिनाई उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार, सियोल एक नाजुक संतुलन की स्थिति में है, जहाँ उसे अमेरिकी सुरक्षा पहलों के साथ संरेखित रहने के साथ-साथ चीन के साथ अपनी आर्थिक निर्भरता को भी संभालना है।

भविष्य में, कोरियाई प्रायद्वीप अमेरिकी-चीन प्रतिस्पर्धा के एक तनावपूर्ण क्षेत्र के रूप में बना रहेगा। यह क्षेत्र "नई शीत युद्ध" का पूरी तरह से प्रतिरूप नहीं हो सकता, लेकिन इसमें संघर्ष की संभावना और सहयोग के अवसर दोनों हैं। इसका परिणाम इस पर निर्भर करता है कि उत्तर और दक्षिण कोरिया के नेता और क्षेत्रीय शक्तियाँ इस जटिल रणनीतिक परिदृश्य को कितनी कुशलता से संभालते हैं। इस प्रतिस्पर्धा के नए युग में दोनों कोरियाई राष्ट्रों की नेतृत्व क्षमता और सहनशक्ति की परीक्षा होगी, क्योंकि उन्हें एक ऐसे माहौल में अपने हितों को सुरक्षित रखना है जो तेजी से बदल रहा है।

डॉ. संजय कुमार, दक्षिण कोरिया से


Saturday, 27 January 2024

हम केवल प्रवाह का अनुसरण कर रहे हैं।



हम चिंताओं, युद्धों, वैश्विक सुरक्षा दुविधा, विचारविहीन राजनीति, चरम स्तर पूंजीवाद, बहुध्रुवीय विश्व, अविश्वास और अवसरवाद से भरी दुनिया में रह रहे हैं। ऐसे में दार्शनिकता कैसे परिभाषित होगी ? स्वस्थ- सुखी जीवन जीने की प्राकृतिक रणनीति क्या होगी? अंतर्दृष्टि तनावपूर्ण समाज तनाव और अवसाद से बचने की कोशिश कर रहा है।

लेकिन समुद्र में रहकर जल से अलग होने और संकटग्रस्त परिवेश में संकट से निकलने जैसी बात नहीं है ? स्वचालन , आत्मसंयम लेकिन आदि इत्यादि सामान्य आदमी किन-किन लोगों-रिश्तों से नाता तोड़ें? प्रकृति से ? रोग से ? जब दुनिया ही आपस में जुड़ी हुई है I

आधुनिक समाज में नैतिकता, मानवीय मूल्य, सद्भावना सदियों पुराने शब्द हो रहे हैं। आक्रामकता और अवज्ञा समस्या, अधीनता सभी स्थितियों में समाधान विहीन हो चुकी है । हम अन्याय के प्रति ग्रहणशील हो रहे हैं I उसे रोकन भी चाहते है लेकिन रोक नहीं पा रहे।

हम जी रहे हैं लेकिन ऐसे वक़्त के साथ जहा दार्शनिकता के आधार पर मनुष्य कार्य नहीं करता नज़र आता I दार्शनिकता का क्या मतलब है ? ऐसे प्रश्न जरूर मन में हिलोरे मारते है परन्तु जब वैज्ञानिक स्वभाव -तर्क पर प्रलोभन पहाड़ माफिक भारी पड़ रहे , ऐसे में सामान्य लोगों का मन भय से निडर हो जाना निजी मतानुसार बेहद लाज़मी है I
हम केवल प्रवाह का अनुसरण कर रहे हैं, यह सामाजिक वास्तविकता लगती है I
संजय कुमार
Contact: easternculturestudies@gmail.com

Thursday, 18 January 2024

रूस -उत्तर कोरिया के गहराते रिश्ते : मायने क्या हैं ?


(Photo Source: Herald) 

उत्तर कोरिया और रूस के बीच आर्थिक और सैन्य सहयोग  गहन होता जा रहा है। 

रूसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा  उत्तर कोरियाई विदेश मंत्री छवे सन-ही का गर्मजोशी भरा स्वागत रूस की ओर से दक्षिण कोरिया को चेतावनी के रूप में भी देखा जा है ।  

 रूस-ुयूक्रेन युद्ध में दक्षिण कोरिय यूक्रेन का समर्थन जरूर करता है लेकिन उसका निर्णय घातक हथियार भेजने का नहीं  रहा है। 

कोरिया के कई लोग मानते है कि  कोरिया गणराज्य-अमेरिका गठबंधन और रूस दोनों से  संतुलित कूटनीति का संचालन कर चाहिए क्योंकि आर्थिक दृष्टिकोण में अगर रूस का मार्किट चीन के पक्ष में गया तो वह हितकारी नहीं ।   इसलिए कोरिया को अमेरिका के साथ वार्ता कर अपने हितों का ध्यान रखना चाहिए और सुरक्षा की दृष्टि से भी उत्तर कोरिया के साथ बातचीत का रास्ता खुला रखना  चाहिए । 

इसका अर्थ यह कतई नहीं कि किसी भी प्रकार के परमाणु हमले  को बर्दाश्त किया जाए । 

रूस हालांकि उत्तर-दक्षिण में युद्ध होने कि सम्भवना या एकपक्षीय नीति से इंकार करता रहा है  और इस इरादे को सत्यापित करने के लिए उत्तर और दक्षिण  दोनों कोरिया से कूटनीतिक सम्बन्ध को परस्पर बनाये रखा है ।   लेकिन यूक्रेन युद्ध के वजह से ध्रुवीकरण फिर से गहराता जा रहा । 

गौरतलब है कि हाल के दिनों में उत्तर कोरिया द्वारा दक्षिण कोरिया के मुख्य शत्रु शासन को अपने संविधान में शामिल करने के अपने इरादे की घोषणा के साथ, रूस और अन्य शिविरों के साथ सहयोग को और मजबूत कर रहा । 

आज उत्तर कोरिया ने अपने विदेश मंत्री की रूस यात्रा की खबर जैसे ही साझा कि दक्षिण कोरिया के राजनीतिक और मीडिया महकमे को ब्रेकिंग न्यूज़ और त्वरित मुद्दा मिल गया । 

रूसी राष्ट्रपति पुतिन की यात्रा घोषणा की, कि वे कोरियाई प्रायद्वीप और पूर्वोत्तर एशिया सहित अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर संयुक्त कार्रवाई को बढ़ावा देने पर आम सहमति पर पहुंच गए हैं। और संवेदनशील क्षेत्रों सहित सभी क्षेत्रों में अपने संबंधों को और मजबूत करेंगे, यह व्यक्तव्य ' दक्षिण कोरियाई जनमानस में सरपट दौर रहा। 



राष्ट्रपति पुतीन ने  ''विकास'' की नीति की घोषणा में रूस द्वारा उल्लिखित 'संवेदनशील क्षेत्रों' की कोई विशेष व्याख्या नहीं थी, लेकिन दक्षिण कोरिया में ऐसा माना  जा रहा है कि  हथियारों के व्यापार जैसे सैन्य सहयोग भी  शामिल हो सकते हैं। 

गहन होता रूस-उत्तर कोरिया सहयोग पूर्वी एशिया में भूराजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है क्योंकि यदि रूस उत्तर कोरिया के लिए अधिक महत्वपूर्ण सहयोगी बनता  है  तो यह क्षेत्र में शक्ति संतुलन को प्रभावित करेगा और मौजूदा गठबंधनों को प्रभावित करेगा।

साथ ही साथ दोनों देशों के बीच संबंधों के गहराने से दक्षिण कोरिया और जापान के बीच सुरक्षा चिंताएँ बढ़ाता जायेगा । चीन परंपरागत रूप से उत्तर कोरिया का एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है और रूस के बढ़ते प्रभाव से चीन की रणनीतिक गणना पर असर पड़ेगा I  संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय देशों सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय संभवतः विकसित हो रहे रूस-उत्तर कोरिया संबंधों पर पैनी नज़र रख रहा।  यह विकास उत्तर कोरिया से संबंधित मुद्दों, जैसे परमाणु निरस्त्रीकरण, मानवाधिकार और क्षेत्रीय स्थिरता के समाधान के वैश्विक प्रयासों को प्रभावित करेगा लेकिन निकट भविष्य में बहुध्रुवीय कूटनीति, वैश्विक दक्षिण की आकांक्षा, रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व के मुद्दे पहले की तरह केंद्र में नहीं होंगे। 

मैंने कल अपने कांगवों नेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रिय सेमिनार में सुरक्षा दुविधा  और पूर्व एशिया पर खासकर  गहरा प्रकाश डाला था और  कूटनीतिक तत्काल राजनयिक संलग्नता कि वकालत कि थी I पूर्वी एशियाई भू-राजनीति कुछ दशकों से निष्क्रिय रूप से सक्रिय थी, लेकिन रूस-उत्तर कोरिया का यह जुड़ाव भू-राजनीतिक कोणों और तनाव को फिर से सक्रिय कर सकता है।

डॉ संजय कुमार 

(जिला योंगसांन  दक्षिण कोरिया )


Saturday, 13 January 2024

उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच बढ़ते तनाव




      (उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन (बाएं से पहले) अपने सैन्य सलाहकारों के साथ सिगरेट पीते हुए)

सीओल(दक्षिण कोरिया) --  उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच तनाव फिर से तीव्र होता जा रहा क्योंकि उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया में अपने एजेंटों को कोडित संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रेडियो स्टेशन का संचालन बंद कर दिया है। उत्तर कोरिया दबाव बढ़ा  दक्षिण कोरिया को  "प्रमुख दुश्मन" करार दे कह रहा पुनर्मिलन की संभावना अब नहीं है।  

उत्तर कोरिया ने अपनी परमाणु क्षमताओं को बढ़ा विशेष रूप से प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगियों पर हमला करने की क्षमता को लक्षित किया है। 

"निर्णायक नीति परिवर्तन" का आह्वान कर किम जोंग उन ने   दक्षिण में शांति और कब्जे सहित संभावित संकट परिदृश्यों के लिए फिर से तैयार रहने का निर्देश दे दक्षिण कोरिया के साथ नागरिक आदान-प्रदान के लिए जिम्मेदार संगठनों को भंग करने को कहा है। 

गौरतलब है कि दोनों  देश 1950-53 के कोरियाई युद्ध के युद्धविराम में समाप्त होने के बाद भी तकनीकी रूप से युद्ध में हैं। 

हालांकि दोनों देशों के बीच युद्ध के बाद के दशकों में तनाव के दौर, यदा-कदा सैन्य झड़पें और शत्रुता कम करने के कूटनीतिक प्रयास होते रहे हैं । सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अंतर-कोरियाई शिखर सम्मेलन और समझौते बीच-बीच में तीखी बयानबाजी और उकसावे की अवधि भी अनेको रहे हैं । दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए, उत्तर कोरिया की परमाणु हथियारों की खोज लगातार तनाव का स्रोत रहा है। 

उत्तर कोरिय  ने वर्ष 2006 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय निंदा और प्रतिबंध भी लगे। लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों सहित उत्तर कोरिया के बार-बार मिसाइल परीक्षणों ने क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं को बढ़ाता रहा है। इन कार्रवाइयों के कारण उत्तर कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध और राजनयिक प्रयास भी बढ़ते  गए । 

हाल की कूटनीतिक भागीदारी, जैसे उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे-इन के बीच ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन, साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ बैठकों ने संभावित सुलह की झलक पेश की थी । हालाँकि, समय-समय पर तनाव भड़कने के साथ प्रगति भी असमान रही है।

लेकिन आज उत्तर कोरिया द्वारा दक्षिण कोरिया को "प्रमुख दुश्मन" घोषित करना, कोडित संदेशों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रेडियो स्टेशन को बंद करना और परमाणु क्षमताओं को बढ़ाने की प्रतिज्ञा ने क्षेत्र की स्थिरता के बारे में चिंताओं को फिर से जन्म दिया है। उत्तर कोरिया-दक्षिण कोरिया तनाव का इतिहास ऐतिहासिक, राजनीतिक और वैचारिक कारकों की एक जटिल परस्पर क्रिया की विशेषता है। स्थिति गतिशील बनी हुई है I

डॉ संजय कुमार (दक्षिण कोरिया से )

कोरियाई प्रायद्वीप का बदलता भू-राजनीतिक परिदृश्य

 कोरियाई प्रायद्वीप पर उत्तर और दक्षिण कोरिया के संबंधों की वर्तमान स्थिति एक नए युग की भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्रतीक है। यह बदलाव वैश्...